कुछ तो हूँ मैं

एक चाह थी एक राह थी
एक सपने की दुनियां गवाह थी
एक जोश था दिल मदहोश था
एक ख़्वाब जब न खामोश था
वह बात क्या सच में हुई है
की बदलावों ने ही दुनिया रची है
फिर क्यों मैंने यही सुना है
सदैव मुझे लोगों में ढालना है
क्या हो अगर मैं ऐसा न करना चाहूँ
क्या होगा अगर मैं इन उसूलों को झुठलाऊं
या फिर कही और उड़ जाऊं
किसी नई जगह पर अपना घर बनाऊं
लेकिन कौन जाने वहाँ हालात अलग होंगे
कौन जाने वहां मुश्किलें कम होंगे
एक चीख न बहार आ पाती है
एक उम्मीद कहीं गुम हो जाती है
एक चिंगारी भी न नज़र आती है 
एक बूंद प्यार की प्यासी रह जाती है 
कुछ तो हूँ मैं यह बात सुनी थी
खुद को फिर ताकत मिली थी
मन में फिर एक लौ जाली है
समझ यह आने में भले ही देर हुई है
अनूठा अनोखा असंभव फिर कुछ करना चाहूँ
रंगो भरा अपना बगियारा मैं खुद सजायूं
ताकत और हौसला आए न आए
हिम्मत और जोश का साथ मैंने है पाए
मत करो मजबूर खुद को उसूलों की बेड़ियों में
जब आराम से चढ़ सकते हो सपनों की सीढ़ियों पे
न मानो हार और बस कर के दिखाओ
अब है वह मौका जब अपना भविष्य तुम खुद बनाओ

Comments

Unknown said…
Sabhi doston ki yahi kahani h hath mai kitab Aur akhon mai pani h....love u yrr ...zindagi ko baya kia h :* :*